यह विचार आदरणीय श्री भोजराज जी सर(नागौर) के हैं जो पिछले कई वर्षों से विद्यालयों में पारदर्शिता व स्कूली शिक्षा को बेहतर ओर गुणवत्ता यु...
आज उन्होंने न्याय पालिका को एक खुला पत्र लिखकर अपील की है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं पर जो भी केस दर्ज व लंबित है उनका जल्द से जल्द निपटारा हो
अगर आप कोई ऐसी विशिष्ट सूचना चाहते हैं जिसे सरकार द्वारा स्वैच्छिक रूप से सार्वजनिक नहीं किया जाता – उदाहरण के लिये, अगर आप जानना चाहते ...
सूचना का अधिकार अधिनियम सूचनाओं को अधिकतम रूप से सार्वजनिक किए जाने को बढ़ावा देता है। व्यवहार में इसका अर्थ है कि आप लोक प्राधिकरणों के...
सूचना का अधिकार अधिनियम अपने दायरे में आने वाले सभी लोक प्राधिकरणों से व्यापक किस्म की सूचनाओं को स्वयं स्वैच्छिक रूप से (जिसे अंग्रे...
सूचना का अधिकार अधिनियम सूचनाओं तक पहुँचने का एक कानूनी ढाँचा स्थापित करता है। लेकिन सुशासन के एक उपकरण के रूप में इसकी व्यावहारिक सफल...
दुर्भाग्यवश नौकरशाही में अभी भी गोपनीयता का बोलबाला है, और वर्तमान में लोक सूचना अधिकारी सारहीन आधारों पर अक्सर सूचना के अधिकार के तहत आ...
अपील बनाम शिकायतें – अंतर क्या है?
किसी लोक सूचना अधिकारी के निर्णय से अंसतुष्ट आवेदक विभाग के अपील प्राधिकारी से अपील कर सकते हैं। यह प्राधिकारी उसी लोक प्राधिकरण में लोक सूचना अधिकारी का कोई वरिष्ठ अधिकारी होगा। आप और लोक सूचना अधिकारी का पक्ष सुनने के बाद अपील प्राधिकारी को फैसला करना होगा कि क्या लोक सूचना अधिकारी का निर्णय सही था या नहीं। अगर अपील प्राधिकारी के निर्णय से भी आप संतुष्ट नहीं होते, तो आप सूचना आयोग के यहाँ दूसरी अपील कर सकते हैं।
या फिर सूचना अधिकार अधिनियम के तहत किसी सूचना तक पहुँच बनाने से सम्बन्धित किसी भी मामले में – जैसे तय समयावधि के भीतर सूचना न देना; अतर्कसंगत शुल्क मांगना; आप के गरीबी रेखा से नीचे होने के बावजूद आपसे शुल्क मांगना, आपने जिस अभिलेख के लिये निवेदन किया था, उसे नष्ट कर देना; या सूचना के खुलासे के बारे में गलत फैसला लेना – आप सीधे सम्बन्धित सूचना आयोग को शिकायत कर सकते हैं। आप शिकायत के मामले में विभाग के अपील प्राधिकारी को दरकिनार कर सकते हैं, लेकिन आपके लिये इस कार्रवाई को ‘शिकायत’ की संज्ञा देना जरूरी है क्यों कि अन्यथा सूचना आयोग आपके सम्प्रेषण को एक अपील मान सकता है और आपसे कह सकता है कि आप पहले विभाग के अपील प्राधिकारी के पास जायें।
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अपील/शिकायत करते समय शामिल की जाने वाली सूचनाएँ
भले ही आपके राज्य ने अपील करने के लिये कोई खास फार्म तय किया हो या नहीं, सभी अपीलों में कम से कम निम्न सूचनाएँ शामिल होनी चाहिएः
(क) आपका नाम और सम्पर्क विवरण, डाक पते, मकान नम्बर तथा ई-मेल पते सहित;
(ख) लोक सूचना अधिकारी का नाम और पता जिसके फैसले के विरुद्ध अपील की जा रही है;
(ग) जिस आदेश के विरुद्ध आप अपील कर रहे हैं, उससे सम्बन्धित ब्योरे (क्रम संख्या सहित);
(घ) अगर अपील आवेदन पर कोई जवाब न मिलने के कारण की जा रही है (या जिसे ‘डीम्ड रेफ्यूजल’ कहा जाता है), तो आवेदन की पावती संख्या, जमा कराने की तिथि, लोक सूचना अधिकारी के नाम और पते सहित आवेदन सम्बन्धी ब्योरे;
(च) अपने मामले के संक्षिप्त तथ्य;
(छ) आपके द्वारा मांगी जाने वाली राहत और राहत के आधार; उदाहरण के लिये, आप निवेदित सूचना को जारी कराना चाहते हैं क्योंकि वह कानूनन छूट की श्रेणी में नहीं आती;
(ज) आपके द्वारा पुष्टि, जैसे यह वक्तव्य “मैं प्रमाणित करता हूँ कि इस आवेदन की सभी सूचनाएँ मेरी जानकारी के अनुसार सच और सही हैं”; और
(झ) कोई अन्य उपयोगी सूचना जो आपके अनुसार आपकी अपील के फैसले में मदद कर सकती है।
*यह अपील के नोटिस की सामान्य विषयवस्तु का एक बुनियादी संक्षिप्त रूप भर है। सीएचआरआई का सुझाव है कि आप सम्बन्धित नियमों को देख लें या फिर अपील प्राधिकारी या सूचना आयोग से पुष्टि करें कि आपको अपनी अपील में किन विवरणों को शामिल करने की जरूरत है।
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आम तौर पर अपील प्राधिकारी अपीलों का निपटारा कैसे करते हैं?
सूचना अधिकार अधिनियम अपील प्राधिकारियों द्वारा अपीलों पर फैसला करने की कोई पद्धति निर्धारित नहीं करता। लेकिन सामान्यतः अपील की कार्रवाई को प्रतिद्वंद्वितापूर्ण होने की बजाय सच की खोज करने का एक प्रयास होना चाहिए। उसे बस इस बात को पता लगाने की कोशिश करनी चाहिये कि क्या अधिनियम को सही तरीके से लागू किया गया था या नहीं। किसी भी अपील में यह साबित करने का दायित्व लोक सूचना अधिकारी का है कि आवेदन को रद्द करने का उसका फैसला सही था। इसका अर्थ है कि हर सुनवाई में लोक सूचना अधिकारी से पहले अपना पक्ष रखने के लिये कहा जाना चाहिए। आपको अपना पक्ष रखने यानी लोक सूचना अधिकारी के फैसले को गलत साबित करने के लिये केवल तभी बुलाया जाना चाहिये, जब लोक सूचना अधिकारी अपने पक्ष को मजबूत तरीके से प्रस्तुत कर पाया हो। किसी भी मामले में अपील प्राधिकारी को यह तय करने के लिये कि क्या लोक सूचना अधिकारी का फैसला सही था, फिर से सभी तथ्यों पर स्वतन्त्र रूप से विचार करने की जरूरत होगी। सभी सम्बन्धित पक्षों – आप, लोक सूचना अधिकारी या वह तीसरा पक्ष जिससे सूचना के खुलासे के बारे में विचार-विमर्श किया गया – को फैसले से पहले सुनवाई का अधिकार है।
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सूचना आयोग – खुलेपन के समर्थक
सूचना अधिकार अधिनियम के तहत केन्द्रीय और राज्य सरकारों के स्तर पर स्वतंत्र और स्वायत्त सूचना आयोग स्थापित करने की जरूरत है।60 नवनियुक्त सूचना आयुक्तों की अध्यक्षता में काम करने वाले इन नये आयोगों को सभी राज्यों में स्थापित किया गया है। (अधिक जानकारी के लिये देखें परिशिष्ट 4)। आयोगों को यह सुनिश्चित करने में कई मुख्य भूमिकायें अदा करनी हैं कि सूचना अधिकार अधिनियम जनता को सूचनाओं तक पहुँच प्रदान करने वाला एक प्रभावी औजार बने। विशिष्ट तौर पर हर आयोग जिम्मेदार हैः
- शिकायतों और अपीलों पर कार्रवाई करनाः अधिनियम के तहत अपनी सूचना की आवश्यकताओं के पूरा न होने की स्थिति में सभी नागरिकों को सूचना आयोग से अपील और शिकायत करने का अधिकार है। निर्णयों की समीक्षा करने में सूचना आयोगों को व्यापक जाँच शक्तियाँ – किसी भी दस्तावेज का निरीक्षण करने सहित, भले ही वह छूट की श्रेणी में आता हो – प्राप्त हैं। उनके पास लोक प्राधिकरणों से अधिनियम की पालना कराने की भी सुदृढ़ और बाध्यकारी शक्तियाँ हैं। इनमें सूचना को जारी करने; लोक सूचना अधिकारियों की नियुक्ति करने अभिलेख व्यवस्थाओं में सुधार करने आवेदकों को मुआवजा देने और जुर्माने के आदेश करने की शक्तियाँ शामिल हैं।61
- कार्यान्वयन की निगरानी करनाः हर साल के अन्त में केन्द्रीय और राज्य सूचना आयोगों को एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना होता है। केन्द्रीय आयोग की रिपोर्ट को संसद और राज्य आयोगों के रिपोर्टों को सम्बन्धित राज्य की विधान मण्डल के पटल पर प्रस्तुत किया जाता है। हर रिपोर्ट में मूल आवेदनों तथा अपील सम्बन्धी आँकड़ों के साथ कार्यान्वयन के प्रयासों पर टिप्पणी तथा सुधार के लिये सिफारिशें शामिल होती हैं। आयोग का वार्षिक रिपोर्ट आयोग के अधिकार क्षेत्र में आने वाले हर प्राधिकरण द्वारा सौंपी गई सूचनाओं के निरीक्षण पर आधारित होता है।62
- विशेष रूप से मानवाधिकार सम्बन्धित सूचना पर निगरानीः कुछ गुप्तचर और सुरक्षा एजेन्सियों को अधिनियम के दायरे के बाहर रखा गया है। लेकिन जब मामला भ्रष्टाचार के आरोपों और मानवाधिकारों के उल्लंघन का हो, तो वे भी इस दायरे में आ जाती हैं। सूचना आयोगों को मानवाधिकारों के उल्लंघनों से सम्बन्धित सभी निवेदनों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
जो आयोग अभी तक स्थापित किये जा चुके हैं, वे अभी अपने आधिकारिक कार्यादेश को समझने में लगे हैं। उन्हें यह सुनिश्चित करने में एक निर्णायक भूमिका अदा करनी है कि सूचना का अधिकार अधिनियम प्रभावी तरीके से कार्यान्वित हो और जनता को यह सुनिश्चित करने के लिये सतर्क रहने की जरूरत है कि ये आयोग प्रभावी रूप से काम करें।
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साबित करने की जिम्मेदारी65
किसी भी अपील पर कार्रवाई में निवेदन को अस्वीकार करने को उचित ठहराने का दायित्व उस व्यक्ति का है जो सूचना को गोपनीय रखना चाहता है यानी लोक सूचना अधिकारी या तीसरे पक्ष का। व्यवहार में, इसका अर्थ है कि आपको आयोग के सामने केवल तब आना होगा, जब सूचना को गुप्त रखना चाहने वाले व्यक्ति से सवाल-जवाब हो चुके हों, क्योंकि आयोग के सामने यह साबित करने का दायित्व उन्हीं का है कि वे सही हैं। अगर सुनवाई आयोजित होती है तो पहले सूचना को गोपनीय रखने के पक्ष में तर्क देने वाले लोक सूचना अधिकारी या तीसरे पक्ष को अपनी बात कहने के लिये बुलाया जायेगा। आपको अपना पक्ष केवल तभी रखना होगा जब आयोग को लगे कि लोक सूचना अधिकारी या तीसरा पक्ष जो कह रहे हैं, वह कुछ तर्कसंगत है। इस मोड़ पर, तब आपको सूचना का खुलासा करने के पक्ष में अपने तर्क देने की जरूरत होगी।
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सूचना आयोगों को दंड देने की शक्ति प्राप्त है
केवल सूचना आयोगों को ही – अपील प्राधिकारियों को नहीं – निम्न कृत्यों के दोषी साबित हुए अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करने और 250 रू. प्रति दिन से लेकर अधिकतम 25,000 रू. का आर्थिक जुर्माना76 लगाने का अधिकार है। अधिकारियों के दंडनीय कृत्य हैं:
- किसी आवेदन को स्वीकार करने से इंकार करना;
- अधिनियम के तहत तय की गई समयावधि में सूचना प्रदान करने में असफल रहना;
- दुर्भावनापूर्वक किसी सूचना के निवेदन को अस्वीकार करना;
- जानबूझ कर गलत, अधूरी या भ्रामक सूचना प्रदान करना;
- किसी निवेदित सूचना को नष्ट करना; और
- सूचना प्रदान करने में किसी भी प्रकार से बाधा डालना।
दंड दिये जाने से पहले सम्बन्धित अधिकारी को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए। अधिकारी को सूचना आयोग के सम्मुख साबित करना होगा कि उसने तर्कसंगत और परिश्रम के साथ कार्रवाई की थी।
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आपके आवेदन पर कार्रवाई करते हुए लोक सूचना अधिकारी को फौरन यह तय करने की जरूरत होगी कि क्या आपके द्वारा निवेदित सूचनाः (क) कार्यालय म...
सूचना का अधिकार अधिनियम समूचे देश में सभी राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों (जम्मू-कश्मीर के अलावा, जो संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत प...
कुछ संगठन अधिनियम के दायरे में नहीं आते
दुर्भाग्यवश, अभी भी कुछ ऐसे संगठन/संस्थाएँ हैं जो पूरी तरह सूचना अधिकार अधिनियम के दायरे में नहीं आए हैं। अधिनियम विशिष्ट रूप से उन 18 केन्द्रीय सुरक्षा तथा गुप्तचर संगठनों को सूचीबद्ध करता है जिन्हें सूचनाएँ प्रदान करने की जरूरत नहीं है। राज्यों को अपने नियंत्रण वाली ऐसी ही संस्थाओं को इस दायरे से बाहर रखने की शक्तियाँ प्रदान करता है। लेकिन, अधिनियम कम से कम इन एजेंसियों से वे सूचनाएँ देने की माँग करता है जो भ्रष्टाचार तथा मानवाधिकारों के हनन के आरोपों के मामलों से सम्बन्धित की गई हैं। मानवाधिकारों के हनन के आरोपों के बारे में सूचनाएँ आवेदन की प्राप्ति के 45 दिनों के भीतर केवल सम्बन्धित सूचना आयोग के अनुमोदन से ही प्रदान की जाएंगी।
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लोक सूचना अधिकारी को आपको अपना आवेदन जमा कराने के लिये इधर से उधर भटकाना नहीं चाहिए
कुछ सरकारी मंत्रालयों/विभागों में आवेदनों को प्राप्त व उन पर कार्रवाई करने के लिये कई लोक सूचना अधिकारियों को मनोनीत किया गया है। यह स्थिति निवेदकों को बहुत उलझन में डालने वाली रही है क्योंकि लोक सूचना अधिकारियों ने उन्हें तब तक एक से दूसरे सूचना अधिकारी के पास भटकाया है जब तक उन्हें “सही” लोक सूचना अधिकारी नहीं मिल गया। उदाहरण के लिये, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने 40 के आस-पास लोक सूचना अधिकारी मनोनीत किए हैं और उनमें से हर एक को एक विशिष्ट विषय/अधिकार क्षेत्र सौंपा है। परिणाम स्वरूप, अगर निवेदित सूचना एक से ज्यादा लोक सूचना अधिकारियों के क्षेत्र से सम्बन्धित है तो आवेदकों को कई आवेदन सौंपने या अतिरिक्त शुल्क अदा करने के लिये मजबूर किया गया है। अधिनियम के तहत ऐसा करने की स्वीकृति नहीं है। हाल ही के एक मामले में, केन्द्रीय सूचना आयोग ने इस बात की पुष्टि की कि यह गलत तरीका है और उसने डीडीए को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करे कि उसके लोक सूचना अधिकारी सभी आवेदनों को स्वीकार करें, भले ही वे उन्हें सौंपे गए खास विषय/क्षेत्र के दायरे में आते हों या नहीं।12 आदर्श रूप से लोक प्राधिकरण आवेदनों के लिये ‘एकल खिड़की’ की व्यवस्था विकसित कर सकते हैं जहाँ कार्यालय के आगे के हिस्से में एक सहायक लोक सूचना अधिकारी सभी आवेदनों को प्राप्त करें भले ही बाद में उन पर कार्रवाई करने का काम कोई लोक सूचना अधिकारियों द्वारा किया जाए।
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गांव:- असावरी
जिला:- नागौर(राजस्थान) 342902
मोबाइल नम्बर:- +917568835310
ईमेल:- hqkiawaz@gmail.com
फ़ेसबुक:- fb.com/hqkiawazfoundation
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